۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
इत्रे क़ुरआन

हौज़ा/ यह आयत स्पष्ट करती है कि अल्लाह किसी भी तरह की गुस्ताखी और अविश्वास को बर्दाश्त नहीं करता है, और जो लोग अल्लाह के बारे में ऐसी बातें कहते हैं उन्हें कड़ी सजा मिलेगी। इस आयत के जरिए अल्लाह तआला ने मुसलमानों को यह भी चेतावनी दी है कि वे इन काफिरों के व्यवहार से दूर रहें और बेहद विनम्रता और सम्मान के साथ अल्लाह से रिश्ता कायम करें।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم   बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम

قَدْ سَمِعَ اللَّهُ قَوْلَ الَّذِينَ قَالُوا إِنَّ اللَّهَ فَقِيرٌ وَنَحْنُ أَغْنِيَاءُ سَنَكْتُبُ مَا قَالُوا وَقَتْلَهُمُ الْأَنبِيَاءَ بِغَيْرِ حَقٍّ وَنَقُولُ ذُوقُوا عَذَابَ الْحَرِيقِ. क़द समेअल्लाहो क़ौलल लज़ीना क़ालू इन्नल्लाहो फ़क़ीरुन व नहनो अग़्नियाओ सनकतोबो मा क़ालू व क़त्लहोमुल अम्बिया बेग़ैरे हक़्क़िन व नक़ूलो ज़ूक़ू अज़ाबल हरीक़े (आले-इमरान 181)

अनुवाद:

निस्संदेह, अल्लाह ने उन लोगों की सुन ली है जो कहते हैं कि अल्लाह गरीब है और हम अमीर हैं। हम उनकी बातें लिखेंगे और पैगम्बरों को अन्यायपूर्वक मार रहे हैं और उनसे (प्रलय के दिन) कहेंगे कि अब जलती हुई यातना का स्वाद चखो।

विषय:

यह आयत यहूदियों की गुस्तखाना और कुफ्राना बातों और उनके कार्यों के विरुद्ध अल्लाह की कड़ी चेतावनी के बारे में है।

पृष्ठभूमि:

यह आयत यहूदियों के एक बेहद निंदनीय बयान के जवाब में नाज़िल हुई थी। कुछ यहूदियों ने अल्लाह के रसूल (स) से कहा कि अल्लाह गरीब है और हम अमीर हैं। उनका यह कथन घोर अविश्वास एवं अहंकार था। यहूदियों के ये विचार इस तथ्य की अभिव्यक्ति थे कि वे स्वयं को धन के मामले में आत्मनिर्भर मानते थे और अल्लाह (नउज़ो-बिल्लाह) को जरूरतमंद मानते थे। इस गुंडागर्दी के साथ-साथ उनका एक और अपराध पैगम्बरों की अन्यायपूर्ण हत्या थी। यह सब उनकी अवज्ञा और अल्लाह की आज्ञाओं का उल्लंघन करने के कारण था।

तफ़सीर:

इस आयत की टीका में व्याख्याकार बताते हैं कि यहूदियों का अल्लाह के बारे में ऐसी निन्दात्मक बातें कहना उनके भीतर के द्वेष को दर्शाता है। यह दृष्टिकोण उनके बौद्धिक विचलन का परिणाम था जिसे उन्होंने अपने धर्म की मूल शिक्षाओं से दूर अपनाया। आयत में, अल्लाह तआला ने उनके कहने का जवाब दिया है कि वह उनके सभी शब्दों और कार्यों की पूरी तरह से रक्षा कर रहा है और उन्हें इसके बाद इसकी सजा मिलेगी।

परिणाम:

यह आयत यह स्पष्ट करती है कि अल्लाह किसी भी तरह की गुस्ताखी और अविश्वास को बर्दाश्त नहीं करता है और जो लोग अल्लाह के बारे में ऐसी बातें कहते हैं उन्हें कड़ी सजा मिलेगी। इस आयत के जरिए अल्लाह तआला ने मुसलमानों को यह भी चेतावनी दी है कि वे इन काफिरों के व्यवहार से दूर रहें और बेहद विनम्रता और सम्मान के साथ अल्लाह से रिश्ता कायम करें।

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तफ़सीर राहनुमा, सूर ए आले-इमरान

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